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“अपने इतिहास और संस्कृति से दूर जाता हुआ क्षत्रिय समाज” क्षत्रिय लेख भाग (1)

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November 22, 2023

आज के समय क्षत्रिय समाज अपने इतिहास और संस्कृति से दूर दिखाई पड़ रहा है । यह बहुत बड़ा प्रश्न है कि जिस संस्कृति की रक्षा के लिए क्षत्रियो ने अपने प्राणों की चिंता नही की वे आज इस संस्कृति से ही दूर खड़े दिखाई पड़ रहे हैं ।

जय माताजी सा स्वागत है आपका क्षत्रिय संस्थान के नए लेख में । क्षत्रिय चिन्तन लेख की श्रंखला में कहने को तो पहला लेख है परन्तु पहले भी हम अलग अलग लेख के माध्यम से क्षत्रिय चिन्तन के मुद्दों को उठा चुके हैं । आज का हमारा लेख इतिहास और संस्कृति से दूर होते हुए क्षत्रिय समाज पर आधारित हैं ।
आज का समय आधुनिकता का समय है इसमें कोई गलत बात भी नही और न कोई विरोध , परन्तु हम इस आधुनिकता में अपनी संस्कृति और इतिहास से दूर हो जाए तब एक बड़ा प्रश्न खड़ा होता हैं । क्षत्रिय समाज आज अपने इतिहास और संस्कृति से दूर जा रहा हैं यह कहने में कोई अतिश्योक्ति नही हैं ।
जिस सभ्यता का इतिहास और उसकी संस्कृति उस सभ्यता ने छोड़ दी उस सभ्यता का पतन होगया है । पतन होता है हमारी नैतिकता का , हमारे आदर्शो का और हमारे सम्मान का और यह पतन कोई दूसरा नही हम स्वयं कर रहे है । आपको यह तथ्य गले से उतरना ही पड़ेगा कि इसके उत्तरदायी हम स्वयं हैं ।

गलती किसकी ?

युवा पीढ़ी ऐसा कर रही है या बुजुर्ग पीढ़ी ने गलती कर दी , ऐसा कह कर दोष मढ़ने में समय नही लगेगा परन्तु सत्य यह है कि यह कोई किसी एक पीढ़ी की गलती नही है । और क्षत्रिय होने के नाते हम एकदूसरे पर दोषारोपण करे तो यह भी हमारे आचरण के विरुद्ध हैं । किसी पर दोष मढ़ने से पहले देख परख कर ही हम कोई टिप्पणी करते रहे है यही क्षत्रिय का धर्म भी है ।
आज इतिहास से हम इस कदर दूर है कि हमारे आदर्श कौन हैं कैसे हैं इसको समझने का समय तक नही । इतिहास हमे सिखाता है कि क्या गलती थी जिसे आज सुधारा जाये पर हमे इतिहास से सीखने के बजाय केवल अपनी महानता दिखाने में होड़ लगी हुई है । आप ही बताइए क्या हमे अपने पुरखो को नमन कर उनके द्वारा बताये गये मार्ग को समझना चाहिए या फिर बस उनके नाम के आधार पर स्वयं अभिमान रखना चाहिए ।
अगर हमे अभिमान करना है तो स्वयं भी अपने पुरखो की तरह त्याग और धर्म को अपनाना पड़ेगा । यह समय भावनाओ में बहने का नही अपितु खुद का विश्लेषण करने का समय हैं । मेरी बात को बुरी न मानते हुए सोचिये कि हम क्यूँ आपसी झगड़ो में धंसते जा रहे हैं । आज एक राजपूत दुसरे राजपूत के साथ केवल कुछ जगह ही खड़ा दिखाई देगा और कब उनका अपने वंश का अभिमान उन्हें एक दुसरे के सामने खड़ा करदे यह कहा नही जा सकता ।
मैं सिसोदिया मैं राठौड़ मैं शेखावत अरे मैं चुण्डावत आदि ! यह बाते भी हमे आपस में दूर करती हैं । आप केवल क्षत्रिय हैं । हम अपने अपने वंश में अपना अभिमान दिखाते हैं और अगर हम इसमें पीछे होने लगे तो एक दुसरे पर कीचड़ उछालने में हमे तनिक सी देर नही लगती । हम पर आक्षेप और कोई नही हम ही लगा देते है । आप बताइए यह कहाँ तक सही है । राजनितिक नेताओ के लिए एक दुसरे से लड़ना क्या यही हमारा स्वाभिमान हैं अब ?
इतिहास हम टीवी से सीख रहे हैं या Whatsapp से तो फिर गलती निकालता है कोई तो लगेगा ही कि हम गलत थे या इतिहास में हम अच्छे नही थे । यदि हमे हमारे इतिहास पर सही में विश्लेषण करना है तो इतिहास को सही माध्यमो पुस्तको से पढ़कर अपने विवेक से विश्लेषण करना होगा यह नही कि हम सही थे बस । भावनाओ में बहकर अब आपस में भिड़ना सही नही ।

संस्कृति से दुरी

हमारी संस्कृति में हमारी बोली एक अलग ही ख्याति है परन्तु आधुनिकता ने वो शब्द और बोली की मिठास ही खत्म करदी । क्या हम उसी भाषा पर गर्व करेगे जो हमे पुरखो ने दी ? क्या हम भी उसी भाषा और संयमित वाणी का उपयोग नही करेंगे ? वो शालीनता और संय्यम जो हमारे पुरखो के व्यक्तित्व में था हमारे अंदर क्यूँ नही ?

साफा और पाग का महत्व

क्षत्रिय पुरुष साफे का महत्व नही समझ रहे हैं । कब पहना, इधर रखा, उधर गये, उसने पहना और फिर कहीं रख दिया !! पहले साफा और पाग हमारी मान था हमारा सम्मान था । बात यहाँ तक थी कि किसी राजपूत का साफा या पाग झुक गयी तो वो झुक गया अर्थात वो अपने आप से ज्यादा अपने पाग की रक्षा करते थे और आज ? आज उस पाग को हम कितना सम्मान देते हैं ? कहने को वो कपड़ा ही है परन्तु नही वो सिर्फ कपड़ा नही वो आपके स्वाभिमान और मान का प्रतीक है । जब उसे आप अपने शीश पर धारण करते है तब उससे जुड़ा इतिहास और पुरखो का बलिदान भी आपके साथ उर्जा रूप में आपके शीश पर धारण होता हैं । आपकी पाग आपका साफा आपके आज और आपके पुरखो के त्याग और आपके कुल की मान मर्यादा है इसका सम्मान कीजिये ।
अगर आप इस मर्यादा का सम्मान करेगे तो उससे आपका मान रहेगा अन्यथा यह केवल कपड़ा रहेगा और यह मान की परम्परा ही समाप्त होजाएगी ।
क्षत्राणियों से निवेदन है कि आपकी पोशाक और आपके आभूषण में हमारी रानियों का सतीत्व और उनका मान है । यह आपका अभिमान है न कि क्रीड़ा का साधन । आप जब भी पोशाक और आभूषण धारण करती हैं तब हमारी सतीत्व की देवियों का सत और उनका सम्मान भी उसमे जुड़ा होता है और यही कारण है आपके इस पहनावे का आज भी इतना सम्मान है ।
हमे हमारे पुरखो के दिए हुए इतिहास और संस्कृति को समझकर उसपर अनुसरण करना होगा तभी हम अपनी संस्कृति को और आगे ले जा सकेंगे । अगर आप अपने इतिहास और संस्कृति पर गर्व करते है और उसका सम्मान अपने सम्मान से ज्यादा मानते है तो यही संस्कृति आपको सम्मान और शक्ति देगी । यह कोई कहावती बात नही आप स्वयं इसे जांच लीजिये ।
केवल कपड़ो से शक्ति का सम्बन्ध कैसे अगर यह प्रश्न आपके मन में उपजा है तो इसका निवारण हम अपने अगले लेख में करेंगे ।
आज हम अपने लेख को आगे की चर्चा पर ले जाने के लिए विराम देंगे ताकि एक एक बिंदु पर विस्तार से विश्लेषण किया जा सके । इस लेख को भावनाओं में आकर नही स्थिर मन से विश्लेषण करके पढ़ें तब आपके अंदर भी सभी प्रश्न सजग होंगे ।
अगर आप भी कोई बिंदु या उसपर चर्चा करना चाहते है या अपना मत और विश्लेषण करना चाहते हैं तो कमेंट करे अथवा आप भी अपनी पोस्ट लिख सकते हैं । अपनी पोस्ट लिखने के लिए Upload My Post पर जाकर लिख सकते हैं । आप चाहे तो हमे Facebook और Instagram के द्वारा हमे अपना मत दे सकते हैं Contact Us में जाकर । आप चाहे तो कमेंट के माध्यम से भी अपना मत दे सकते हैं ।
आपसे अनुरोध है इस लेख को हर क्षत्रिय तक शेयर जरुर करें । हमारा कार्य है अपने इतिहास और संस्कृति के प्रति हर क्षत्रिय को सजग करना और आपके इतिहास और वंशावली को डिजिटल रूप से सुरक्षित करना ।

आपसे अगले लेख में इसी बिंदु को आगे बढ़ाते हुए आगे भेंट होगी । जय माताजी

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