कुलधरा का सच व भाटी राजपूतों का न्याय
जब भी आपने कुलधरा का नाम सुना होगा तो आपके दिमाग में हमेशा सालिम सिंह का नाम आता होगा और आपके दिमाग में एक प्रश्न आता होगा होगा की आखिर एक राजपूत के कारण इतने लोगो को गाँव छोड़ना पड़ गया या राजपूत इतने क्रूर थे! दरअसल ये कहानी हम सब तक अधूरी पहुंची हैं जिसके कारण ये भ्रामक जानकारी फेलती गयी आज हम इसके पीछे की कहानी बतायेंगे|
कुलधरा राजस्थान के जैसलमेर जिले में स्थित पालीवाल ब्राह्मणों का एक गांव है, जो वर्तमान में हॉन्टेड प्लेस के रूप में प्रसिद्ध है | भानगढ़ के बाद सर्वाधिक डरावनी जगह यही मानी जाती है |कई भूत प्रेतों से संबंधित कहानियां भी प्रचलित हैं, जो मात्र टूरिस्ट अट्रैक्शन के लिए गढ़ ली गई हैं
आज हम आपको इस गांव की वास्तविकता बताते हैं
जैसलमेर रियासत में सालम सिंह नाम का एक दीवान हुआ करता था, जिसे लोग गलती से राजपूत समझने की भूल कर बैठते हैं
(सालम सिंह का नाम कईं जगह सालिम सिंह भी लिखा गया है) असल में इसका पूरा नाम सालम सिंह मेहता था, जो कि अपने क्रूर रवैये के लिए प्रसिद्ध था|
इसका प्रभाव दिन ब दिन बढ़ता गया और एक समय ऐसा आ गया कि ये जैसलमेर महारावल सा की आज्ञा का भी उल्लंघन करने लगा| एक दिन सालम सिंह कुलधरा गांव की तरफ आया, जहां एक मंदिर में उसने 10-12 वर्ष की कन्या को देखा और उस पर मोहित हो गया|जैसलमेर जिले में मुख्य रूप से 84 गांव पालीवाल ब्राह्मणों के थे, जिनमें सबसे बड़ा गांव कुलधरा था और ये कन्या इसी कुलधरा गांव के मुख्य पुरोहित की पुत्री थी
सालम सिंह ने कुलधरा के निवासियों से कहा कि हम इस कन्या से विवाह करेंगे
पालीवाल ब्राह्मण बखूबी जानते थे कि सालम सिंह ख़ुद अपने राजा की बात नहीं मानता, तो हमारी क्या मानेगा, इस ख़ातिर सभी ने मिलकर सालम सिंह से कहा कि हमें सोचने के लिए 10 दिन का समय दे दिया जावे
सालम सिंह ने उनको दस रोज का समय दिया,हालांकि फिर भी सालम सिंह उन्हें दुख देने लगा|इन्हीं 84 गांवों में से एक गांव काठोड़ी था, जहां के पालीवाल ब्राह्मणों को भाटी राजपूतों ने सुरक्षा प्रदान की| सालम सिंह ने अपने सैनिकों को काठोड़ी गांव पर हमला करने के लिए भेज दिया, जिनकी रक्षार्थ कई भाटी राजपूतों ने बलिदान दिया | भाटीयों की ये शाखा मोकल व बाला थी |
कुलधरा गांव के मुख्य पुरोहित ने सभी 84 गांव के मुखिया को अपने गांव में आमंत्रित किया और गांव में बनी हुई 8 खंभों की छतरी के करीब एक सभा आयोजित की
इस सभा में तय हुआ कि हम अपनी बेटी सालम सिंह को कभी नहीं देंगे और यदि हम उसके विरुद्ध लड़ेंगे तो निश्चित ही मारे जावेंगे
इस ख़ातिर मात्र एक रात के समय में 84 गांव के सभी पालीवाल ब्राह्मणों ने जैसलमेर छोड़ दिया, अपने बने बनाए घर, तालाब वगैरह सब कुछ छोड़ कर चले गए
सालम सिंह द्वारा किए गए इस अमानवीय कार्य से जैसलमेर की प्रजा व राजा सब बड़े क्रोधित हुए पर सालम सिंह के पक्ष में भी बहुत से लोग थे इसलिए उसके विरुद्ध एकदम कार्यवाही नहीं की जा सकती थी|फिर महारावल सा ने भाटी राजपूतों को अपनी तरफ मिलाना शुरू किया और योजना अनुसार एक दिन भरे दरबार में एक भाटी राजपूत ने सालम सिंह का सिर काट दिया

इस सालम सिंह के नाम पर एक हवेली भी जैसलमेर दुर्ग के पास मौजूद है, जिसे सालिम सिंह की हवेली कहते हैं
इस सालिम सिंह का पुत्र अगला दीवान बना और यह भी बड़ा क्रूर हुआ
कुछ वर्षों बाद इसका वध भी भाटी राजपूतों द्वारा ही किया गया।










