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सिसोदिया राजवंश की चंद्रावत शाखा जिसका इतिहास बाहर नही आ पाया | चन्द्रावत और रामपुरा भाग-1 | By J.S.Rathoud

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December 22, 2022

चंद्रावत राजपूत मेवाड़ की सिसोदिया राजवंश की शाखा हैं । इस शाखा का इतिहास मेवाड़ के इतिहास ही नही अपितु जयपुर , इंदौर, ग्वालियर, मालवा के लिए भी महत्वपूर्ण हैं परन्तु इस शाखा का इतिहास विस्तृत रूप में बाहर नही आ पाया ।

आज हम इस शाखा से जुड़ी कुछ जानकारी जानेंगे और आगे हम इनके इतिहास,युद्ध आदि को लेकर विस्तृत जानकारी आपके सामने रखेंगे ।
चन्द्रावत सिसोदिया की बात की जाए तो इनकी मुख्य राजधानी रामपुरा है जो कि मध्यप्रदेश के नीमच जिले में हैं । रामपुरा से पूर्व इनकी राजधानी आमद (आमंद) थी जो कि आज नीमच जिले की मनासा तहसील का एक गाँव हैं । इसी आमद में चंद्रावतो के भैरूं जी गोरा बावजी बिराजे हैं । अभी इसी मंदिर का पुनः निर्माण और संरक्षण किया जा रहा हैं ।

कुलदेवी-

चंद्रावत राजपूतो की कुलदेवी चूड़ामन/चूड़ावन माता है जो की आंतरी/आंत्री गाँव में स्थित हैं और इसी गाँव से चूड़ामण/चूड़ावन माताजी आंत्री माताजी के नाम से प्रसिद्ध हैं । यह मन्दिर बहुत चमत्कारी हैं ।
चंद्रावत राजपूतो की संख्या ज्यादातर मालवा में हैं जिसमे नीमच जिला, मंदसौर,रतलाम,उज्जैन से महेश्वर से होते हुए राजगढ़ और भोपाल के आसपास हैं तो वहीं जयपुर के पास भी इनके ठिकाने हैं ।
चंद्रावत मेवाड़ से खोर,सेमली ,आंत्री, आमद और फिर रामपुरा इस तरह उन्होंने अपने मुख्य गढ़ स्थापित किये । इसके साथ ही और मुख्य गढ़ और ठिकाने है जिसकी चर्चा हम विस्तृत रूप में करेंगे ।
रामपुरा का पुराना दुर्ग

चित्तौड़ तीसरे शाके से सम्बंध

जब अकबर ने चित्तौड़ दुर्ग 1567 में घेरा था उस समय उसकी निति थी कि चित्तौड़ के साथी राज्यों को पहले जीता जाये ताकि चित्तौड़ को उनकी सहायता प्राप्त न हो सके ।
इसलिए उसने आसफ खां के नेतृत्व में एक टुकड़ी को रामपुरा की ओर रवाना किया । इस टुकड़ी से युद्ध हुआ । इस समय रामपुरा के राव दुर्गभान सिंह थे जिन्हें राव दुर्गा चंद्रावत (दुर्गा सिसोदिया) के नाम से भी जाना जाता हैं । राव दुर्गा अपनी टुकड़ी के साथ पहले ही चित्तौड़ के लिए जा चुके थे । आसफ खां ने रामपुरा नगर में प्रवेश कर आमजन और प्रजा को लूटना आरम्भ करदिया और कत्लेआम शुरू करदिया था । इस स्थिति में रामपुरा को मुगलों से संधि करनी पड़ी पर यह संधि दबाव में आकर नही हुई ।
हम जब राजपूतो और मुगलों की संधि की बात सुनते हैं तो एक हिस्सा बार बार टारगेट करता हैं कि राजपूतो ने गुलामी स्वीकार की ! यदि गुलामी ही स्वीकार की होती तो गुलाम अपनी शर्ते कैसे रख सकता हैं ? इसीलिए जब रामपुरा का प्रतिरोध बढ़ने तब स्वयं अकबर भी यही चाहता था की वो इन लड़ाइयों में न उलझ कर जैसे तैसे उनसे मित्रता कर ले । इसीलिए उसने रामपुरा से संधि करना उचित समजा ।
यह संधि साफ़ बताती हैं की इसमें कहीं से भी रामपुरा ने झुक कर या पूर्ण दबाव में आकर मुगलों की अधीनता स्वीकार की । रामपुरा की शर्तो को अकबर ने मान लिया । फिर भी रामपुरा के कई सैनिक चित्तौड़ युद्ध में लड़ें ।
अकबर खुद इस संधि के पक्ष में था क्यूँकी उसे चित्तौड़ पर विजय प्राप्त करनी थी और यदि इस स्थिति में वह रामपुरा या आसपास के राज्यों में उलझता तो वो कभी चित्तौड़ को घेर नही पाता ।
150 वर्ष तक रामपुरा की मुगलों से संधि रही और इसमें भी रामपुरा ने मेवाड़ की सहायता ही की । बाद में वापस रामपुरा मेवाड़ का हिस्सा बन गया था । मेवाड़ के साथ रामपुरा के हमेशा सम्बंध अच्छे रहे और रामपुरा ने मेवाड़ की सहायता की थी ।
जब भी मेवाड़ सेना मालवा के अभियान करती तब रामपुरा में विश्राम करती थी । भामाशाह और ताराचंद जी जब मालवा की लूट से धन ले आये तब भी रामपुरा का जिक्र आता है ।
मराठो के आने के बाद रामपुरा मराठो के लिए महत्वपूर्ण होगया परन्तु रामपुरा के चंद्रावतो ने मराठो से अपना बराबर हक़ लिया तभी माने । इंदौर के बाद अगर दूसरी गद्दी की बात की जाए तो रामपुरा ही नाम आता था । रामपुरा में अनेक वीर हुए और अपने सिसोदिया कुल का हमेशा नाम गौरवांवित किया ।
रामपुरा अंत में अपने आपमें स्वतंत्र रहा और अपने हक रामपुरा ने कभी नही छोड़े ।
राजतन्त्र के अंतिम समय में रामपुरा की मेवाड़ से दुरी के कारण कहीं न कहीं सिसोदिया राजवंश की इस शाखा का इतिहास बाहर नही आ पाया ।

चंद्रावत और चुण्डावत एक समझने की भूल –

कई बार मेरी जब मारवाड़ के कुछ लोगो से बात हुई या ऐसे व्यक्ति से बात हुई जो इतिहास से दूर हो तो उन्होंने चन्द्रावत को चुण्डावत समझकर मुझे जवाब दिया । बड़ी विडम्बना रही की इतिहास में इस शाखा का नाम नही । उस राज्य का नाम नही जो महाराणा प्रताप के समय अप्रत्यक्ष रूप से उनका सहयोगी बना रहा । हमे जरूरत हैं अपने खोये हुए इतिहास को जोड़कर जानने की ।
चंद्रावत राजपूतो से सम्बन्धित यह हमारी एक जानकारी की पोस्ट थी इसके बाद हम चन्द्रावत शाखा पर विस्तृत जानकारी और इतिहास प्रेषित करेंगे ताकि हर क्षत्रिय तक इस इतिहास की जानकारी पहुँचे । हमारा इतिहास बिखरा हुआ है और हमे ही इसे समेट कर एक धागे में पिरोना हैं ताकि हम क्रमबद्ध तरीके से इतिहास को पढ़ना और समझना शुरू करें ।
अगर आपके पास भी चन्द्रावत शाखा से सम्बन्धित जानकारी हैं तो आप क्षत्रिय संस्थान के Facebook/Instagram अथवा कांटेक्ट ईमेल पर जानकारी भेज सकते हैं ।
चन्द्रावत शाखा को लेकर इतिहास जागरूकता के लिए मेरी यह पहली पोस्ट है इसके साथ ही चित्तौड़ दुर्ग के गुप्त जगहों की जानकारी और इतिहास को लेकर भी मेरी पोस्ट आप आगे पढ़ पाएंगे । क्षत्रिय संस्थान में अपने इतिहास और अपनी शोध को रखने का मंच प्रदान किया गया हर क्षत्रिय को इससे जुडकर अपने इतिहास को संरक्षित करना चाहिए।
आपको अगर यह जानकारी पसंद आई तो इसे शेयर जरुर करें और क्षत्रिय संस्थान से जुड़े रहे मेरी अगली पोस्ट जल्द आपके बीच होगी । जय माता जी जय क्षात्र धर्म
यह विडियो मेरे द्वारा बनाया गया और मेरे Youtube चैनल पर जाकर भी आप और विडियो देख सकते हैं

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