Flag

Flag

Coat Of Arms

Coat Of Arms

Kairwara (Alwar)

ठिकाना

राजवंश: कच्छवाहा/Kachhavaha

शाख: पिचानोत/Pichanot

उपशाख: पिचानोत/Pichanot

राज्य: Rajasthan

गाँव: 5

अंग्रेजी नाम: Kairwara

परिग्रहण: 1947

क्षेत्र: 12000

Last Updated: December 22, 2022

Share On Facebook
Share On Twitter
Share On Linkedin
Share On Whatsapp
पिचानोत राजपूत(आमेर परिवार वर्तमान जयपुर) (आमेर शासक राजा पृथ्वीराज कछवाहा (१५०२ -१५२७) के पुत्र पाचयण सिंह कछवाहा के वंशज पिचानोत कछवाहा राजपूताना (आमेर शासक राजा पृथ्वीराज कछवाहा (१५०२ -१५२७) के पुत्र पाचयण सिंह कछवाहा के वंशज, सामरिया संस्थापक, बारह कोटड़ी में शामिल पिचानोत कछवाहा राजपूताना) Dr Purendra Singh Pichanot Tikana Kairwara Palwara Alwar B.Sc Life Science, Watershed Management Diploma, M.Sc Chemistry Science, PhD in Chemistry Science from Banasthali Vidyapith Rajasthan A++ World 2 university. वर्ण – क्षत्रिय वंश – सूर्यवंश शाखा – कछवाहा (कुशवाह) वंशज – आमेर शासक राजा पृथ्वीराज कछवाहा (१५०२ -१५२७) के पुत्र पाचयण सिंह कछवाहा के वंशज पिचानोत कहलाये। खाप – पिचानोत निकास – आमेर से, बारह कोटडि में शामिल नायला और फिर शहर – सामरिया से। ठिकाना – कैरवाड़ा, अलवर (राजस्थान) (कुल देवता सूर्यदेव, ईष्टदेव भगवान श्री रामचन्द्र जी, श्री अम्बा माता ग्वालियर, कुलदेवी श्री जमवाय माता, लोक देवता श्री श्री १००८ श्री भोमिया जी महाराज) ।। जय रघुनाथजी की ।। ।। यतो धर्मस्ततो जय – “जहां धर्म है, वहां जीत है। पाचयण सिंह कछवाहा जी (पिचानोत कछवाह) की सामरिया की जागीर पाचयण सिंह कछवाहा जी ने सामरिया पर अपना अधिकार कर लिया और उसे अपना ठिकाना बना लिया और पाचयण सिंह कछवाहा जी को सामरिया का संस्थापक कहा जाने लगा और पाचयण सिंह कछवाहा के वंशज पिचानोत कछवाहा का ठिकाना बन गया और और सामरिया वर्तमान में बांसवाड़ा जिले के राजस्थान में है यहा का पिन कोड ३२७६०४ है फिर पाचयण सिंह कछवाहा के वंशज शहर से विभिन्न भागो में अनेक जागीर प्राप्त कर फ़ैल गए उसी क्रम में शहर – सामरिया से ४० घोड़े की जागीर में प्रमुख ठिकाना कैरवाड़ा (अलवर) को १२ घोड़े की जागीर मिली, संवत १६३५ में ४० घोड़े की जागीर में से १२ घोड़े की जागीर ठिकाना कैरवाड़ा (अलवर) को प्रदान की गयी उस समय ठिकाना कैरवाड़ा (अलवर) में ठा.सा. शिशराम सिंह पिचानोत का वंशकरम चल रहा था उसके पश्चात उनके पुत्र ठा.सा. राजसिहं पिचानोत (संवत १६९०) में ठिकाना कैरवाड़ा (अलवर) में स्थाई रूप से निवास करने लगे और ठा.सा. राजसिहं पिचानोत के बेटे ठा.सा. सायब सिह पिचानोत, जयपुर स्टेट की और से युद्ध भूमि में लड़ाई करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए और उनी के चमत्कार से ठिकाना कैरवाड़ा (अलवर) में श्री भोमियाजी महाराज के मन्दिर का निर्माण हुआ ठा.सा. सायब सिह पिचानोत की भोमियाजी मंदिर में सिला और बड़ी छतरी है जबकि छोटी छतरी ठा.सा. छितर सिंह पिचानोत की है। आज वो लोक देवता श्री श्री १००८ श्री भोमियाजी महाराज के नाम से कैरवाड़ा (अलवर) में जाने जाते है। इनका इतिहास आगे दिया है। 21 पाचयण सिंह कछवाहा जी (पिचानोत कछवाह) की ४० घोड़े की जागीर महाराजा पृथ्वीराज कछवाहा जी के पुत्र पाचयण सिंह कछवाहा जी वंशज हैं। पाचयण सिंह कछवाहा जी के वंशज आगे चलकर पिचानोत कछवाह कहलाये, जो कछवाहों की बारह कोटड़ी में शामिल है। आमेर राजा पृथ्वीराज कछवाहा जी ने अपने राज्य को 12 पुत्रो में बराबर विभाजित किया जिसे आज भी राजपूताना में 12 कोटडिया प्रसिद्ध हैं। उनी बारह कोटडियो में आमेर राजा पृथ्वीराज कछवाहा जी का पुत्र पाचयण सिंह कछवाहा जी (पीढ़ी 282) भी शामिल था जिन्होंने बीकानेर के राठौड राजा राव लुनकरण सिंह जी की बेटी अपूर्वा कवर या बाला बाई के गर्भ से जन्म लिया और उनके वंशज आगे चलकर पिचानोत कछवाह कहलाये, पाचयण सिंह कछवाहा को बारह कोटड़ियो मे से नायला की जागीर मिली, इन्होने बाद मे शहर (नादौती ब्लॉक जिला करौली के अंतर्गत आता है।) पर अपना अधिकार रखा और फिर पाचयण सिंह कछवाहा ने सामरिया पर अपना अधिकार रखा और इने सामरिया के संस्थापक कहा जाता हैं। और फिर विभिन्न भागो में अनेक जागीर प्राप्त कर फ़ैल गए उसी कर्म में शहर – सामरिया से ४० घोड़े की जागीर में प्रमुख ठिकाना कैरवाड़ा (अलवर) को १२ घोड़े की जागीर मिली। ठि. कैरवाडा का इतिहास बहुत पुराना हैं। यह बात उस समय की है संवत १६३५ में लड़ाई करते हुए पिचानोत राजपूतो की कैरवाड़ा, खेड़ली पिचानोत चौकी पूरी तरह से समाप्त हो गई और केवल खारेडा चौकी जीवित रही थी उस समय तीन चौकी कैरवाड़ा, खारेडा, खेड़ली पिचानोत थी तब वहा महाराजा पृथ्वीराज कछवाहा जी के पुत्र पाचयण सिंह कछवाहा जी के वंशज 12 कोटडिया में नायला की जागीर मिली, इन्होने बाद मे शहर (नादौती ब्लॉक जिला करौली के अंतर्गत आता है।) पर अपना अधिकार रखा और फिर पाचयण सिंह कछवाहा ने सामरिया पर अपना अधिकार रखा और इने सामरिया के संस्थापक कहा जाता हैं। और फिर विभिन्न भागो में अनेक जागीर प्राप्त कर फ़ैल गए उसी कर्म में शहर – सामरिया से ४० घोड़े की जागीर मिली। उन पांच बेटो के पांच ठिकाने ये हैं। (१) पहले बेटे ठिकाना – ढिगावड़ा, अलवर को (14 घोड़े की जागीर मिली।) (२) दूसरे बेटे शिशराम सिंह पिचानोत ठिकाना – कैरवाड़ा, अलवर को (12 घोड़े की जागीर मिली।) (३) तीसरे बेटे ठिकाना – खेड़ली पिचानोत, अलवर को (08 घोड़े की जागीर मिली।) (४) चौथे बेटे ठिकाना – रूपवास, अलवर (4.25 घोड़े की जागीर मिली।) (५) पाचवे बेटे ठिकाना -धोलापलाश, अलवर को (1.75 घोड़े की जागीर मिली।) 22 पाचयण सिंह कछवाहा जी (पिचानोत कछवाह) की १२ घोड़े की कैरवाड़ा जागीर महाराजा पृथ्वीराज कछवाहा जी के पुत्र पाचयण सिंह कछवाहा जी वंशज हैं। पाचयण सिंह कछवाहा जी के वंशज आगे चलकर पिचानोत कछवाह कहलाये, जो कछवाहों की बारह कोटड़ी में शामिल है। आमेर राजा पृथ्वीराज कछवाहा जी ने अपने राज्य को 12 पुत्रो में बराबर विभाजित किया जिसे आज भी राजपूताना में 12 कोटडिया प्रसिद्ध हैं। उनी बारह कोटडियो में आमेर राजा पृथ्वीराज कछवाहा जी का पुत्र पाचयण सिंह कछवाहा जी (पीढ़ी 282) भी शामिल था जिन्होंने बीकानेर के राठौड राजा राव लुनकरण सिंह जी की बेटी अपूर्वा कवर या बाला बाई के गर्भ से जन्म लिया और उनके वंशज आगे चलकर पिचानोत कछवाह कहलाये, पाचयण सिंह कछवाहा को बारह कोटड़ियो मे से नायला की जागीर मिली, इन्होने बाद मे शहर (नादौती ब्लॉक जिला करौली के अंतर्गत आता है।) पर अपना अधिकार रखा और फिर पाचयण सिंह कछवाहा ने सामरिया पर अपना अधिकार रखा और इने सामरिया के संस्थापक कहा जाता हैं। और फिर विभिन्न भागो में अनेक जागीर प्राप्त कर फ़ैल गए उसी कर्म में शहर – सामरिया से ४० घोड़े की जागीर में प्रमुख ठिकाना कैरवाड़ा (अलवर) को १२ घोड़े की जागीर मिली। ठि. कैरवाडा (अलवर) राजस्थान – ठि. कैरवाडा का इतिहास बहुत पुराना हैं। यह बात उस समय की है संवत १६३५ में लड़ाई करते हुए पिचानोत राजपूतो की कैरवाड़ा, खेड़ली पिचानोत चौकी पूरी तरह से समाप्त हो गई और केवल खारेडा चौकी जीवित रही थी उस समय तीन चौकी कैरवाड़ा, खारेडा, खेड़ली पिचानोत थी तब वहा महाराजा पृथ्वीराज कछवाहा जी के पुत्र पाचयण सिंह कछवाहा जी के वंशज 12 कोटडिया में नायला की जागीर मिली, इन्होने बाद मे शहर (नादौती ब्लॉक जिला करौली के अंतर्गत आता है।) पर अपना अधिकार रखा और फिर पाचयण सिंह कछवाहा ने सामरिया पर अपना अधिकार रखा और इने सामरिया के संस्थापक कहा जाता हैं। और फिर विभिन्न भागो में अनेक जागीर प्राप्त कर फ़ैल गए उसी कर्म में शहर – सामरिया से ४० घोड़े की जागीर मिली। उन पांच बेटो के पांच ठिकाने ये हैं। (१) पहले बेटे ठिकाना – ढिगावड़ा, अलवर को (14 घोड़े की जागीर मिली।) (२) दूसरे बेटे शिशराम सिंह पिचानोत ठिकाना – कैरवाड़ा, अलवर को (12 घोड़े की जागीर मिली।) (३) तीसरे बेटे ठिकाना – खेड़ली पिचानोत, अलवर को (08 घोड़े की जागीर मिली।) (४) चौथे बेटे ठिकाना – रूपवास, अलवर (4.25 घोड़े की जागीर मिली।) (५) पाचवे बेटे ठिकाना -धोलापलाश, अलवर को (1.75 घोड़े की जागीर मिली।) उस में से १२ घोड़े की जागीर ठिकाना कैरवाड़ा (अलवर) को प्रदान की गयी उस समय ठिकाना कैरवाड़ा (अलवर) में ठा.सा. शिशराम सिंह पिचानोत का वंशकरम चल रहा था। ठाकुर साहब शिशराम सिंह पिचानोत जी का निकास शहर – सामरिया के पिचानोत कछवाहा परिवार से हुआ था ठाकुर साहब शिशराम सिंह जी को ठिकाना कैरवाड़ा, अलवर में १२ घोड़े की जागीर दी गयी थी। वर्तमान मै कैरवाड़ा ग्राम पंचायत, मालाखेड़ा तहसील (से 09 किलोमीटर की दूरी) के अलवर जिले से 14 किलोमीटर की दूरी ओर जयपुर से 142 किलोमीटर और दिल्ली से 150 किलोमीटर की दूरी पर बसा हुआ हैं। अभी कैरवाड़ा (अलवर) दिल्ली एनसीआर में हैं। ठाकुर साहब शिशराम सिंह पिचानोत जी ठिकाना कैरवाड़ा अस्थाई रुप से रहने लगे, और उनके बाद उनके बेटे ठाकुर साहब राज सिंह पिचानोत संवत १६९० से ठिकाना कैरवाड़ा में स्थाई रूप से निवास करने लगे। ठाकुर साहब शिशराम सिंह पिचानोत ठाकुर साहब राज सिंह पिचानोत ठाकुर साहब राज सिंह के पांच बेटे 1. ठाकुर साहब जोरावर सिंह पिचानोत, 2. ठाकुर साहब गुमान सिंह पिचानोत, 3. ठाकुर साहब धन सिंह पिचानोत, 4. ठाकुर साहब सायब सिंह पिचानोत, 5. ठाकुर साहब संग्राम सिंह पिचानोत। 1. ठाकुर साहब जोरावर सिंह पिचानोत – ठाकुर साहब जोरावर सिंह पिचानोत का वंश आगे नही चला। 2. ठाकुर साहब गुमान सिंह पिचानोत – ठाकुर साहब गुमान सिंह पिचानोत के चार लड़के जिनमे देवी सिंह पिचानोत, राम सिंह पिचानोत, अखे सिंह पिचानोत, पंध सिंह पिचानोत ने जन्म लिया और अपना वंश आगे बढ़ाया। अखे सिंह पिचानोत जी के चार लड़के जिनमे गोविन्द सिंह पिचानोत, सावंत सिंह पिचानोत, विसल सिंह पिचानोत, सोहल सिंह पिचानोत ने जन्म लिया और अपना वंश आगे बढ़ाया। ठाकुर साहब गुमान सिंह पिचानोत के पोते (अखे सिंह पिचानोत के बेटे) सावंत सिंह पिचानोत के चार बेटे जिनमे बख्तावर सिंह पिचानोत, पिरथी सिंह पिचानोत, मान सिंह पिचानोत,और मोती सिंह पिचानोत ने जन्म लिया और अपना वंश आगे बढ़ाया। 3. ठाकुर साहब धन सिंह पिचानोत – ठाकुर साहब धन सिंह पिचानोत का वंश आगे नही चला। 4. ठाकुर साहब सायब सिंह पिचानोत (बड़ी छतरी ओर भोमिया जी महाराज) – ठाकुर साहब सायब सिंह पिचानोत के दो बेटे धीरज सिंह पिचानोत, मोहन सिंह पिचानोत ने जन्म लिया और अपना वंश आगे बढ़ाया। ठाकुर साहब धीरज सिंह पिचानोत के बेटे जिनमे गुलाब सिंह पिचानोत, संगराम सिंह पिचानोत, सोहल सिंह पिचानोत, भूप सिंह पिचानोत, सालिम सिंह पिचानोत, नवल सिंह पिचानोत, विसन सिंह पिचानोत ने जन्म लिया और अपना वंश आगे बढ़ाया। 1. (ठाकुर साहब धीरज सिंह पिचानोत जी का वंश) (ठाकुर साहब धीरज सिंह पिचानोत के बेटे गुलाब सिंह पिचानोत जी का वंश) ठाकुर साहब धीरज सिंह पिचानोत के के बेटे गुलाब सिंह पिचानोत ने भी अपना वंश आगे बढ़ाया और चार बेटे मगल सिंह पिचानोत, हाकिम सिंह पिचानोत, छीतर सिंह पिचानोत (छोटी छतरी, भोमियाजी महाराज), रणजीत सिंह पिचानोत ने जन्म लिया और अपना वंश आगे बढ़ाया। (ठाकुर साहब गुलाब सिंह पिचानोत के बेटे रणजीत सिंह पिचानोत जी का वंश) गुलाब सिंह पिचानोत के बेटे रणजीत सिंह पिचानोत ने भी अपना वंश आगे बढ़ाया और चार बेटे मोहन सिंह पिचानोत, सुल्तान सिंह पिचानोत, भीम सिंह पिचानोत (दुसरा नाम – दुर्जन सिंह), पध सिंह पिचानोत ने जन्म लिया और अपना वंश आगे बढ़ाया। रणजीत सिंह पिचानोत के बेटे मोहन सिंह पिचानोत ने भी अपना वंश आगे बढ़ाया और चार बेटे जीवन सिंह पिचानोत, नादरा सिंह पिचानोत, भगवंत सिंह पिचानोत, हरेनाथ सिंह पिचानोत ने जन्म लिया और अपना वंश आगे बढ़ाया। मोहन सिंह पिचानोत के बेटे भगवंत सिंह पिचानोत ने भी अपना वंश आगे बढ़ाया और तीन बेटे मलजी पिचानोत, ननुलाल सिंह पिचानोत, किशन सिंह पिचानोत ने जन्म लिया और अपना वंश आगे बढ़ाया। (ठाकुर साहब रणजीत सिंह पिचानोत के बेटे भीम सिंह पिचानोत (दुर्जन सिंह) जी का वंश) रणजीत सिंह पिचानोत के बेटे भीम सिंह पिचानोत (दुसरा नाम – दुर्जन सिंह) ने भी अपना वंश आगे बढ़ाया और सोहल सिंह पिचानोत ने जन्म लिया और अपना वंश आगे बढ़ाया। ठाकुर साहब भीम सिंह पिचानोत (दुसरा नाम – दुर्जन सिंह) के के बेटे सोहल सिंह पिचानोत ने भी अपना वंश आगे बढ़ाया और सोहल सिंह पिचानोत के बेटे रघुमान सिंह पिचानोत, बखतावार सिंह पिचानोत, इन्द्र सिंह पिचानोत, कानसिंह पिचानोत, अमृत सिंह पिचानोत, दोलत सिंह पिचानोत, सुजान सिंह पिचानोत, सहजमरण सिंह पिचानोत ने जन्म लिया और अपना वंश आगे बढ़ाया। सोहल सिंह पिचानोत के बेटे अमृत सिंह पिचानोत ने भी अपना वंश आगे बढ़ाया और तीन बेटे हाथी सिंह पिचानोत, फूल सिंह पिचानोत, चमन सिंह पिचानोत ने जन्म लिया और अपना वंश आगे बढ़ाया। अमृत सिंह पिचानोत के बड़े बेटे हाथी सिंह पिचानोत ने भी अपना वंश आगे बढ़ाया और चार बेटे शिवप्रसाद सिंह पिचानोत, मेहताब सिंह पिचानोत, सुगन सिंह पिचानोत, गोविन्द सिंह पिचानोत ने जन्म लिया और अपना वंश आगे बढ़ाया। अमृत सिंह पिचानोत के दूसरे नंबर वाले बेटे फूल सिंह पिचानोत ने भी अपना वंश आगे बढ़ाया और सुगन सिंह जी को गोद लिया और अपना वंश सुगन सिंह जी को गोद लेकर बढ़ाया। हाथी सिंह पिचानोत के सबसे बड़े बेटे शिवप्रसाद सिंह पिचानोत ने भी अपना वंश आगे बढ़ाया और शिवप्रसाद सिंह पिचानोत ने एक बेटे को जन्म दिया उनका नाम भवर सिंह पिचानोत रखा गया। ठाकुर साहब भवर सिंह पिचानोत ने भी अपना वंश आगे बढ़ाया और तीन बेटे तेज सिंह पिचानोत, उमेद सिंह पिचानोत, केहरि सिंह पिचानोत ने जन्म लिया और अपना वंश आगे बढ़ाया। ठाकुर साहब तेज सिंह पिचानोत के दो बेटे हैं किशन सिंह पिचानोत और दिनेश सिंह पिचानोत, ठाकुर साहब उमेद सिंह पिचानोत के दो बेटे हैं महेश सिंह पिचानोत और जितेंद्र सिंह पिचानोत, ठाकुर साहब केहरि सिंह पिचानोत के दो बेटे हैं धर्मेंद्र सिंह पिचानोत और पुरेन्द्र सिंह पिचानोत ये ठिकाना – कैरवाड़ा (पालवाड़ा) में निवास कर रहे है। पुरेन्द्र सिंह पिचानोत पुरेन्द्र सिंह पिचानोत जन्म ०५ – ०७ – १९९२ में हुआ। इन्होने मास्टर ऑफ़ साइंस इन रसायन विज्ञान में निम्स विश्वविद्यालय जयपुर से और वाटर शेड मैनेजमेंट का कोर्स वर्धमान महावीर विश्वविद्यालय कोटा राजस्थान से किया इसके पश्चात इन्होने डॉक्टर ऑफ फिलॉसफी (पीएचडी) इन रसायन विज्ञान में वनस्थली विद्यापीठ राजस्थान के रसायन विभाग से पूर्ण की। (ठाकुर साहब धीरज सिंह पिचानोत के बेटे संग्राम सिंह पिचानोत जी का वंश) ठाकुर साहब धीरज सिंह पिचानोत के बेटे संग्राम सिंह पिचानोत जी ने भी अपना वंश आगे बढ़ाया और पदम सिंह जी को गोद लिया, पदम सिंह जी किशन सिंह जी के बेटे थे उनको संग्राम सिंह पिचानोत जी ने गोद लेकर अपना वंश आगे बढ़ाया। इस प्रकार पदम सिंह के नाम से संग्राम सिंह पिचानोत जी का वंश आगे चला। (ठाकुर साहब धीरज सिंह पिचानोत के बेटे भूप सिंह पिचानोत जी का वंश) ठाकुर साहब धीरज सिंह पिचानोत के के बेटे भूप सिंह पिचानोत जी ने भी अपना वंश आगे बढ़ाया। भूप सिंह पिचानोत जी ने बेरीसाल सिंह और सुल्तान सिंह जी के बेटे चपरा सिंह जी को भी गोद लिया। अर्थात भूप सिंह पिचानोत जी ने बेरीसाल सिंह और चपरा सिंह जी को भी गोद लिया। बेरीसाल सिंह ने भी अपना वंश आगे बढ़ाया और उनके बेटे गंगा सिंह पिचानोत जी, शिवचरन सिंह पिचानोत, सादुल सिंह पिचानोत ने जन्म लिया और अपना वंश आगे बढ़ाया। गंगा सिंह पिचानोत के बेटे गोवर्धन सिंह पिचानोत जी, जसवंत सिंह पिचानोत जी, बहादुर सिंह पिचानोत जी, उमराव सिंह पिचानोत जी, माधो सिंह पिचानोत जी, सम्पत सिंह पिचानोत जी ने जन्म लिया लेकिन गंगा सिंह पिचानोत जी के तीन बेटो की आस्मिक मृत्यु हो गयी उनमे से गोवर्धन सिंह पिचानोत जी, जसवंत सिंह पिचानोत जी, बहादुर सिंह पिचानोत जी ये तीन थे जिनकी आस्मिक मृत्यु हो गयी थी। गंगा सिंह पिचानोत जी के तीन बेटो की आस्मिक मृत्यु होने के कारण उन्होंने नाथू सिंह जी के बेटे गनपत सिंह जी को गोद लिया और जतन सिंह जी के बेटे और भूर सिंह जी के बेटे गिरवर सिंह जी को गोद लिया था। इस प्रकार गंगा सिंह पिचानोत जी का वंश आगे चला। शिवचरन सिंह पिचानोत जी के बेटे शिम्भू सिंह पिचानोत जी, माधो सिंह पिचानोत जी ने जन्म लिया और अपना वंश आगे बढ़ाया। शिम्भू सिंह पिचानोत जी के बेटे ग्यान सिंह पिचानोत जी, साधु सिंह पिचानोत जी, चाँद सिंह पिचानोत जी ने जन्म लिया और अपना वंश आगे बढ़ाया। माधो सिंह पिचानोत जी के बेटे सवाई सिंह पिचानोत, किशोर सिंह पिचानोत जी, भवानी सिंह पिचानोत ने जन्म लिया और अपना वंश आगे बढ़ाया। चपरा सिंह पिचानोत जी के दो बेटो ने जन्म लिया उनमे से केसरी सिंह पिचानोत जी और बने सिंह पिचानोत जी थे इस प्रकार भूप सिंह पिचानोत जी का वंश चपरा सिंह पिचानोत ने बढ़ाया। (ठाकुर साहब धीरज सिंह पिचानोत के बेटे विसन सिंह पिचानोत जी का वंश) ठाकुर साहब विसन सिंह पिचानोत जी के तीन बेटो ने जन्म लिया उनमे से जीवन सिंह पिचानोत जी, अर्जुन सिंह पिचानोत जी और चमन सिंह पिचानोत जी और अपना वंश आगे बढ़ाया। जीवन सिंह पिचानोत जी ने गोद लिए केसरी सिंह जी और बने सिंह जी को और अपना वंश आगे बढ़ाया। केसरी सिंह जी और बने सिंह जी दोनों चंदर सिंह जी के बेटे थे जिने जीवन सिंह पिचानोत जी ने गोद ले लिया और अपना वंश आगे बढ़ाया। जीवन सिंह पिचानोत जी के बेटे केसरी सिंह पिचानोत जी ने अपना वंश आगे बढ़ाया और उनके बेटा शिम्भू सिंह पिचानोत जी ने जन्म लिया। अर्जुन सिंह पिचानोत जी ने अपना वंश आगे बढ़ाया और उनके बेटा हनुत सिंह पिचानोत जी और चंदर सिंह पिचानोत जी जो की गोद गए जीवन सिंह पिचानोत जी के इस प्रकार इनका वंश चला। 2. (ठाकुर साहब मोहन सिंह पिचानोत जी का वंश) ठाकुर साहब मोहन सिंह पिचानोत जी के बेटे माधो सिंह पिचानोत और रघुनाथ सिंह पिचानोत ने भी अपना वंश आगे बढ़ाया। 5. ठाकुर साहब संग्राम सिंह पिचानोत – ठाकुर साहब संग्राम सिंह पिचानोत के गोद आये सुर्जन सिंह पिचानोत, दुर्जन सिंह पिचानोत, और बक्स सिंह पिचानोत जी, ये तीन बेटे ठाकुर साहब संग्राम सिंह पिचानोत ने गोद लिये थे। 23 श्री श्री १००८ श्री भोमियाजी महाराज भोमिया शब्द यह इतिहास बहुत पुराना है परन्तु उतना ही सच है। यह इतिहास ठिकाना कैरवाड़ा अलवर, राजस्थान का है। जोकि एक समय में राजपूताना के नाम से जाना जाता था। भोमिया शब्द जागीरदारों के लिए उपयोग किया गया राजस्थान के अंदर सर्वाधिक भोमिया पाए जाते हैं। जागीरदारों की मृत्यु के बाद पुरानी देवी देवताओं के दारा उनको देव योनी के अंदर प्रवेश लिया जाता है। और उन्हें कलयुग का देवता के रूप में लोगों की समस्या को हल करने के लिए उनकी आत्मा को एक मूर्ति के रूप में इस धरती पर प्रतिष्ठित करते हैं। राजस्थान के लगभग हर गांव में कई भोमियाजी है। उनके अंदर दैविक शक्ति होती है। जिससे वह लोगों की समस्याओं को हल करते हैं। वे संपूर्ण देव न होकर अर्द्ध देव कहलाते हैं। श्री श्री १००८ श्री भौमिया जी का इतिहास ठाकुर साहब शिशराम सिंह पिचानोत जी ठिकाना कैरवाड़ा और उनके बाद उनके बेटे ठाकुर साहब राज सिंह पिचानोत संवत १६९० से ठिकाना कैरवाड़ा में स्थाई रूप से निवास करने लगे। ठाकुर साहब राज सिंह पिचानोत के पाँच बेटे उनमे से बेटे ठाकुर साहब जोरावर सिंह पिचानोत, ठाकुर साहब गुमान सिंह पिचानोत, ठाकुर साहब धन सिंह पिचानोत, ठाकुर साहब सायब सिंह पिचानोत, ठाकुर साहब संग्राम सिंह पिचानोत। ठाकुर साहब सायब सिंह पिचानोत शांत स्वभाव के थे। ठाकुर साहब सायब सिंह पिचानोत के घर में दो बेटे ठाकुर साहब धीरज सिंह पिचानोत, ठाकुर साहब मोहन सिंह पिचानोत ने जन्म लिए, एक दिन ठाकुर साहब सायब सिंह पिचानोत ने अपने दोनों बेटो को पास बुलाया और उनसे कहा की मेरी एक अंतिम इच्छा हैं कि मेरे मरने के बाद मेरे शरीर को अग्नि मत देना मुझे साधु, महात्माओ की तरह मिट्टी दे देना। और कुछ दिनों बाद फिर से युद्ध शुरु हो गया और ठाकुर साहब सायब सिह पिचानोत आमेर (जयपुर) की और से युद्ध भूमि में युद्ध करने गये ठाकुर साहब सायब सिंह पिचानोत इस बार के युद्ध में बहुत साहस से लड़े थे। लेकिन उनको युद्ध में तलवार लग गयी। और इस प्रकार से ठाकुर साहब सायब सिंह पिचानोत युद्ध लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हो गए। और युद्ध में पराक्रम दिखाते हुए ठाकुर साहब सायब सिंह पिचानोत हुए भोमिया ठाकुर हुए। ठाकुर साहब सायब सिंह पिचानोत का दाह संस्कार। हिन्दू सनातन धर्म में पार्थिव शरीर को दाह संस्कार करने का नियम है। सनातन धर्म में साधु को समाधि और सामान्यजनों का दाह संस्कार किया जाता है। इसके पीछे कई कारण हैं। साधु को समाधि इसलिए दी जाती है। क्योंकि ध्यान और साधना से उसका शरीर एक विशेष उर्जा लिए हुए होता है। इसलिए उसकी शारीरिक ऊर्जा को प्राकृतिक रूप से विसरित होने दिया जाता है। और परिवार और समाज के लोगों ने ठाकुर साहब सायब सिंह पिचानोत जी की अंतिम इच्छा को एक सिरे से खारिज कर दिया, और कहते हैं ना विधि के विधान को कोई नहीं बदल सकता है। और हिन्दू धर्म के अनुसार ठाकुर साहब सायब सिंह पिचानोत जी की अर्थी तैयार की गयी ठाकुर साहब सायब सिंह पिचानोत जी की अर्थी को अग्नि देने के लिए शमसान में ले आये और ठाकुर साहब सायब सिंह पिचानोत जी को अग्नि देने के लिए लकडिया लगा दी गयी और पुरे विधि विधान के साथ अग्नि उनके बड़े बेटे धीरज सिंह पिचानोत जी पास में आ गये तभी एक आकाशवाणी हुई आसमान से आवाज आने लगी फूलो की बारिश होने लगी और तब तक आसमान से बहुत तेज आवाज के साथ एक सिला (बहुत बड़ा पत्थर) आकर पड़ा ठाकुर साहब सायब सिंह पिचानोत जी का शव जमीन में अन्दर चला गया, इस प्रकार से ठाकुर साहब सायब सिंह पिचानोत जी का शव समस्त लकड़ियों के साथ धरती में समा गया और केवल ऊपर सिला नजर आने लगी। सिला 24 श्री श्री १००८ श्री भोमियाजी महाराज का चमत्कार हाथरस (उत्तर प्रदेश) के पास कोई सेठ रहता था। उसके कोई संतान नहीं थी। तो श्री श्री १००८ श्री भोमिया जी (ठाकुर साहब सायब सिंह पिचानोत जी) ने उनको एक सपना दिया की कैरवाड़ा में जाकर वहा राजपूतो का एक शमसान घाट हैं। वहा पर जाकर मेरा मन्दिर बन जायेगा तो आपके संतान हो जाएगी। सेठ कैरवाड़ा में पहुंच गया। और अपना सपना गाव के लोगों को बताने लगा और वहा सेठ ने भोमियाजी का मंदिर तैयार करा दिया। और उस सेठ को संतान हो गयी। उसी सेठ ने श्री श्री १००८ श्री भोमिया जी (ठाकुर साहब सायब सिंह पिचानोत जी) का दूसरा मंदिर हाथरस में जाकर बनवाया जो कि घंटा घर के पास हाथरस में ठाकुर साहब सायब सिंह पिचानोत जी (भोमिया जी) के नाम से जाना जाता हैं। श्री श्री १००८ श्री भोमियाजी महाराज की मान्यता सभी जगह फैलने लग गयी और दूर दूर से भक्त गण आने लगे तो राजपूत समाज ने वहा राजपूत शमसान घाट बंद कर दिया और उस जगह पर बगीचा बना दिया जब सभी की मनोकामना पूर्ण होने लगी तो धीरे – धीरे यहा लोग यहा आने लगे। (श्री भोमियाजी महाराज – ठाकुर साहब सायब सिंह पिचानोत जी) (श्री भोमियाजी महाराज – ठाकुर साहब छीतर सिंह पिचानोत जी) हर साल यहा श्री श्री १००८ श्री भोमिया जी महाराज का मेला लगता हैं। जब फसल कट जाती है। तब गर्मियों में पीपल पुणु का मेला भरता है मेले में अनेको दुकाने आती हैं। साथ में विशाल कुश्ती ढ़गल भी होता है कुश्ती में भाग लेने अनेको पहलवान आते है। पीपल पुणु को अभुज सावा होने के कारण भी भक्त आते है। श्री श्री १००८ श्री भोमिया जी महाराज को प्रसाद चढ़ाते है। और कुश्ती एवम मेला का हिस्सा बनते हैं कुछ मन्नत मांगते हुए पेट के बल परिक्रमा लगाते हैं। और शादी होने के बाद जोड़े से लोग श्री श्री १००८ श्री भोमिया जी महाराज का ढोक देने एवं प्रसाद चढ़ाने आते हैं। साथ में कुछ यहा अपने बच्चे का जडूला उतरवाने भी आते हैं। (श्री श्री १००८ श्री भोमिया जी महाराज के प्रसाद चढ़ाते पंडित जी।) श्री श्री १००८ श्री भोमिया जी महाराज की सेवा करने वाले मंदिर के साधु महंत भोलागिरी बताते है की भोमिया जी के प्रसाद रविवार और बृहस्पतिवार के साथ हर महीने की पुणु को चढ़ाया जाता हैं। श्री श्री १००८ श्री भोमिया जी महाराज की दो छतरी हैं। जो सबसे बड़ी छतरी तो ठाकुर साहब सायब सिंह पिचानोत जी की हैं। और छोटी छतरी ठाकुर साहब छीतर सिंह पिचानोत जी की हैं। (श्री श्री १००८ श्री भोमिया जी महाराज मन्दिर के साधु महंत भोला गिरी महाराज) पीपल पुणु का मेला भरता है। मेले में अनेको दुकाने आती हैं। साथ में विशाल कुश्ती ढ़गल भी होता है कुश्ती में भाग लेने अनेको पहलवान आते है। पीपल पुणु को अभुज सावा होने के कारण भी भक्त आते है। श्री श्री १००८ श्री भोमिया जी महाराज को प्रसाद चढ़ाते है। और कुश्ती एवम मेला का हिस्सा बनते हैं।
1. परमात्मा 151. रेवामयी
2. ब्रह्मा 152. सिंधुमयी
3. मरीचि 153. असंकुमयी
4. कश्यप 154. श्याममयी
5. सूर्य (सूर्यवंश विख्यात) 155. मोहमयी
6. वैवस्वत मनु 156. धर्ममयी
7. इक्ष्वाकु (प्राचीन कौशल देश के राजा और राजधानी अयोध्या थी) 157. कर्ममयी
8. विकुक्षि (शशाद) 158. राममयी
9. पुरंजय 159. सुरतिमयी
10. अनेना (अनरण्य) 160. शीलमयी
11. पृथु 161. शूरमयी
12. विष्टराश्व (विजिताश्व) 162. शंकरमयी
13. चदं 163. कृष्णामयी
14. युवनाश्व 164. यशमयी
15. श्रावस्त 165. गोतममयी
16. बृहदश्व 166. नल
17. कुवलाश्व 167. ढोला
18. हढाश्व 168. लक्षमगा्राय (लक्ष्मण)
19. हरयश्व 169. राजभानु (राजाभाण) [नरवर से ग्वालियर गये]
20. निकुम्भ 170. वज्धाम (वज्रदानम)
21. संहताश्व 171. मधुबृहा (मधुब्रह्म)
22. कृशाश्व 172. मगंलराय
23. प्रसेनजित् 173. विक्मराय
24. युवनाश 174. अनगंपाल
25. मान्धातृ 175. क्षीपाल (सूर्यपाल)
26. पुरुकुत्स 176. सामंतपाल (सावन्तपाल)
27. त्रसदस्यु 177. भीमपाल
28. सम्भूत 178. गगंपाल
29. अनरण्य 179. मंहतपाल
30. हरयाश्व 180. महेन्दपाल
31. वसुमत 181. राजपाल
32. त्रिधनवन् 182. मदनपाल
33. त्रियाक्गा 183. अनंतपाल
34. सत्यव्रत 184. वसंतपाल
35. राजा हरिश्चंद्र 185. विजयपाल
36. रोहित 186. कामपाल
37. हरिताश्व 187. बृहापाल
38. हरित 188. विष्णुपाल
39. चंवु 189. धुधुंपाल
40. विजय 190. कृष्णापाल
41. रूरूक 191. लोहंगपाल
42. वृक 192. भौमपाल
43. वाहुक (असित) 193. अजयपाल
44. सगर 194. अश्वपाल
45. असमंजस 195. श्यामपाल
46. अंशुमन्त 196. अगंपाल
47. दिलीप 197. पुहमपाल
48. भगीरथ (जो गंगा को धरती पर लाये) 198. बंसतपाल
49. श्रुत 199. हस्तपाल
50. नाभाग 200. कामपाल
51. अम्बरीश 201. चन्दपाल
52. सिन्धुद्वीप 202. गोविंदपाल
53. अयुतायुस् 203. उदयपाल
54. ऋतुपर्ण 204. बगंपाल
55. सर्वकाम 205. रगंपाल
56. सुदास 206. पुष्पपाल
57. मित्रसह 207. हरिपाल
58. अश्मक 208. अमरपाल
59. मूलक 209. छर्त्रपाल
60. शतरथ 210. महीपाल
61. इलि्वल 211. सोनपाल
62. विश्वसह 212. धीरपाल
63. खट्वागं 213. सुंगधिपाल
64. दीर्घबाहु 214. पद्मपाल
65. रघु (कुल को रघुकुल कहा जाता है) 215. रूदृपाल
66. अज 216. विष्णुपाल
67. दशरथ 217. विनयपाल
68. राम 218. अच्छुपाल
69. कुश 219. भैरवपाल
70. अतिथि 220. सहजपाल
71. निषध 221. देवपाल
72. नल 222. त्रिलोचनपाल
73. नभ 223. विलोचनपाल
74. पुंडरीक 224. इसिकपाल
75. क्षेमधन्वा 225. क्षीपाल
76. देवानोक 226. सुरतिपाल
77. अहिनर 227. सुगनपाल
78. रूरू 228. अतिपाल
79. पारिपात्र 229. मजुंपाल
80. दल 230. भोगेन्द्पाल
81. शिच्छल 231 भोजपाल
82. उक्थ 232 रत्नपाल
83. वज्नाभ 233 श्यामपाल
84. संखनभ 234 हरिचन्द्पाल
85. व्युति्थताश्व 235 कृष्णापाल
86. विश्वसह 236 वीरचन्दपाल
87. हिरण्यनाभ 237 त्रिलोकपाल
88. पुष्प (पुष्य) 238 धनपाल
89. ध्रुवसन्धि 239 मुनिपाल
90. सुदर्शन 240 नखपाल
91. अग्निवर्णा 241 प्रतापपाल
92. शीघ्र 242 धर्मपाल
93. मरू 243 भुविपाल
94. प्रसुक्षुत 244 देशपाल
95. सुगविं 245 परमपाल
96. असपर् (अमर्ष) 246 इदुंपाल
97. महश्वान् (महास्वन) 247 गिरिपाल
98. वितवान् 248 महीपाल
99. वृहद्ल (बृहदबल) 249 कर्गापाल
100. वृहत्क्षगा (बृहत्क्षण) 250 रूवर्गपाल
101. गुरूक्षेप 251 अगृपाल
102. वत्स 252 शिवपाल
103. वत्सव्यूह 253 मानपाल
104. प्रतिव्योम 254 पाशर्वपाल
105. दिवाकर 255 वरचन्दपाल
106. सहदेव 256 गुगापाल
107. वृहदश्व (बृहदश्‍व) 257 किशोरपाल
108. भानुरथ 258 गंभीरपाल
109. सुप्रतीक 259 तेजपाल
110. मरूदेव 260 सिद्पाल
111. सुनक्षत्र 261 कान्हदेव
112. किन्नर 262 देवानीक
113. अंतरिक्ष 263 ईशदेव
114. सुवगी (सुवर्ण) 264 सोढदेव(सोरा सिंह) (966-1006)
115. अभिवरजित (अमित्रजित्) 265 दुलहराय(ढोलाराय) (1006-1036)
116. वृहदा्ज 266 कॉकिलदेव (काँखल जी, कांकल देव) (1036-1038)
117. धर्मी 267 हुनदेव (हरगूदेव) (1038-1053)
118. कृंतुजय (कृतन्जय) 268 जान्हडदेव (जान्ददेव) (1053-1070)
119. रगांजय (रणन्जय) 269 पंञ्जावन (पाजून, पज्जूणा) (1070-1084)
120. संजय 270 मलैसी (1084-1146)
121. शाक्य 271 बयालदेव (1146-1179)
122. कुदो्दन 272 राजदेव (1179-1216)
123. राहुल 273 किलहनदेव जी
(1216-1276)
124. प्रसेनजित् 274 कुंतल (1276-1317)
125. क्षुद्क 275 जूगा्सी(जुणसी, जानसी, जसीदेव) (1317-1366)
126. कुडंक 276 राजा उदयकरण कछवाह जी

(1366-1388)

127. सुरथ 277 राजा राव नरसिंह कछवाह

(1388-1413)

128. सुमित्र 278 बनबीर सिंह कछवाह (1413-1424)
129. कूर्म 279 उधाराव कछवाह (उद्रग)

(1424-1453)

130. वत्सवोध (कच्छ) 280 राजा चन्द्रसेन कछवाह (1453-1502)
131. बुधसेन 281 राजा पृथ्वीराज सिंह कछवाह

(1502-1527)

132. धर्मसेन 282 पंचायण सिंह कछवाह

(पिचानोत कछवाह वंशज कहलाये)

133. घ्वजसेन (भजसेन) 283 विट्ठलदास सिंह पिचानोत
134. लोकसेन 284 हरिदास सिंह पिचानोत
135. लक्ष्मीसेन 285 भोजराज सिंह पिचानोत
136. रजसेन 286 भारमल सिंह पिचानोत***
137. कामसेन (करमसेन) 287 ठा.सा. शिशराम सिंह पिचानोत

(संवत  १६३५  में ठिकाना कैरवाड़ा १२ घोड़े की जागीर मिली)

138. रविसेन 288 ठा.सा. राजसिहं पिचानोत
139. कीर्तिसेन 289 ठा.सा. सायब सिह पिचानोत

(भोमिया जी महाराज)

140. महासेन 290 ठा.सा. धीरज सिहं पिचानोत
141. धर्मसेन 291 ठा.सा. गुलाब सिहं पिचानोत
142. अमरसेन 292 ठा.सा. रणजीत सिहं पिचानोत
143. अजसेन 293 ठा.सा. भीमसिहं पिचानोत

(दुर्जन सिहं पिचानोत)

144. अमृतसेन 294 ठा.सा. सोहल सिहं पिचानोत
145. इन्द्सेन (इंद्रसेन) 295 ठा.सा. अमृत सिहं पिचानोत
146. राजमयी 296 ठा.सा. हाथी सिहं पिचानोत
147. विजयमयी 297 ठा.सा. शिवप्रसाद सिहं पिचानोत
148. शिवमयी (स्योमई) 298 ठा.सा. भँवर सिहं पिचानोत
149. देवमयी 299 ठा.सा. केहरी सिहं पिचानोत
 150. सिदि्मयी 300 पुरेन्द सिहं पिचानोत
Dr Purendra Singh Pichanot B.Sc, DWSM, M.Sc, PhD PhD Banasthali Vidyapith Rajasthan Tikana Kairwara Alwar

  Disclaimer: यह साइट एक कार्य प्रगति पर है, और कई लेखों में त्रुटियां, दोहराव हो सकता है, या बस कोमल प्रेमपूर्ण देखभाल की आवश्यकता हो सकती है। हम पाठकों को इन समस्याओं को ठीक करने में मदद करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। इस साइट पर जानकारी संबंधित प्रांतों के सदस्यों द्वारा प्रदान की जाती है और 100% सटीक नहीं हो सकती है। कृपया उपयोग के नियमों और शर्तों को देखें।