कैरवाड़ा (अलवर)

जागीर

ठिकाने की महत्वपूर्ण जानकारियाँ

ठिकाने का मुख्य राजपूत राजवंश :-

राठौड़

Chief Rajput Dynasty Of Thikana:-

Rathod

वर्तनाम में निवासित राजपूत राजवंश:-

किस रियासत से सम्बन्धित हैं ? :-

शेखावत/सिसोदिया

मेवाड़/स्वतंत्र हैं

Rajput Dynasty Residing At Present:-

Related To Which Province? :-

Shekhawat/Sisodiya

Mewad/Independent

मांसाहार और मदिरा वर्जित?

जी हाँ

Nonveg & Alcohol Are Prohibited?

Yes

बाईसा और बन्ना को बराबर शिक्षा के अवसर?

जी हाँ

Baisa&Banna Equal Education Opportunities?

Yes

सरकारी नोकरीयों में राजपूतो की संख्या?

15

Number of Rajputs In Government Jobs?

15

निजी नोकरीयों में राजपूतो की संख्या?

15

Number of Rajputs In Private Jobs?

15

नोकरीयों में राजपूत बाईसा/महिलाओं की संख्या?

05

Number of Rajputs Baisa/Ladies In Jobs?

05

राजनीति में राजपूतो की संख्या ?

05

Number of Rajputs In Politics ?

05

व्यापार में राजपूतो की संख्या ?

05

Number of Rajputs In Business?

05

किसान राजपूतो की संख्या ?

05

Number of Farmer Rajputs?

05

क्या ठिकाने में मंदिर हैं ?

जी हाँ

Are There Temples In The Thikana?

Yes

राजपूत जनसंख्या:-

1000

Rajput Population:-

1000

1000

Rajput Population:-

1000

मुख्य क्षत्रिय राजवंश-
पिचानोत
राजवंश की शाखा-
कच्छवाह
राजवंश की उपशाखा-
पिचानोत
अन्य राजवंश-
नहीं/No
उनके नाम-
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जनसंख्या-
200
मांसाहार -
सामान्य चलन में हैं / Are Common
मदिरा -
पूर्णतः प्रतिबंधित / Strictly Prohibited
शिक्षा प्रतिशत-
80
शासकीय सेवा में क्षत्रिय-
8
शासकीय सेवा में क्षत्राणी-
2
निजी क्षेत्र सेवा में क्षत्रिय-
80
निजी क्षेत्र सेवा में क्षत्राणी-
0
राजनीति में क्षत्रिय-
120
राजनीति में क्षत्राणी-
0
व्यापार में क्षत्रिय-
0
व्यापार में क्षत्राणी-
0
कृषि में क्षत्रिय-
45
बेरोजगार क्षत्रिय-
0
मंदिरों की संख्या-
24
मंदिरों के नाम-
श्री भौमिया जी, नरसिंह, हनुमान जी, शिवालय, ठाकुर जी, गणेश जी

ठिकाने का पता

तहसील-
मालाखेड़ा
जिला-
अलवर Alwar
राज्य-
Rajasthan

ठिकाने का इतिहास और सम्बन्धित जानकारी

इतिहास (पिचानोत कछवाह) आमेर राजा पृथ्वीराज कछवाहा जी ने अपने राज्य को 12 पुत्रो में बराबर विभाजित किया जिसे आज भी राजपूताना में 12 कोटडिया प्रसिद्ध हैं। उनी बारह कोटडियो में आमेर राजा पृथ्वीराज कछवाहा जी का पुत्र पाचयण सिंह कछवाहा जी भी शामिल था जिन्होंने बीकानेर के राठौड राजा राव लुनकरण सिंह जी की बेटी अपूर्वा कवर या बाला बाई के गर्भ से जन्म लिया और उनके वंशज आगे चलकर पिचानोत कछवाह कहलाये, पाचयण सिंह कछवाहा को बारह कोटड़ियो मे से नायला की जागीर मिली, इन्होने बाद मे शहर (नादौती ब्लॉक जिला करौली के अंतर्गत आता है।) पर अपना अधिकार रखा और फिर पाचयण सिंह कछवाहा ने सामरिया पर अपना अधिकार रखा और इने सामरिया के संस्थापक कहा जाता हैं। और फिर विभिन्न भागो में अनेक जागीर प्राप्त कर फ़ैल गए उसी कर्म में शहर – सामरिया से ४० घोड़े की जागीर में प्रमुख ठिकाना कैरवाड़ा (अलवर) को १२ घोड़े की जागीर मिली, संवत १६३५ में ४० घोड़े की जागीर में से १२ घोड़े की जागीर ठिकाना कैरवाड़ा (अलवर) को प्रदान की गयी उस समय ठिकाना कैरवाड़ा (अलवर) में ठा.सा. शिशराम सिंह पिचानोत का वंशकरम चल रहा था पाचयण सिंह कछवाहा जी के वंशज आगे चलकर पिचानोत कछवाह कहलाये, जो कछवाहों की बारह कोटड़ी में शामिल है। भोमिया शब्द यह इतिहास बहुत पुराना है परन्तु उतना ही सच है। यह इतिहास ठिकाना कैरवाड़ा अलवर, राजस्थान का है। जोकि एक समय में राजपूताना के नाम से जाना जाता था। भोमिया शब्द जागीरदारों के लिए उपयोग किया गया राजस्थान के अंदर सर्वाधिक भोमिया पाए जाते हैं। जागीरदारों की मृत्यु के बाद पुरानी देवी देवताओं के दारा उनको देव योनी के अंदर प्रवेश लिया जाता है। और उन्हें कलयुग का देवता के रूप में लोगों की समस्या को हल करने के लिए उनकी आत्मा को एक मूर्ति के रूप में इस धरती पर प्रतिष्ठित करते हैं। राजस्थान के लगभग हर गांव में कई भोमियाजी है। उनके अंदर दैविक शक्ति होती है। जिससे वह लोगों की समस्याओं को हल करते हैं। वे संपूर्ण देव न होकर अर्द्ध देव कहलाते हैं। श्री श्री १००८ श्री भौमिया जी का इतिहास ठाकुर साहब शिशराम सिंह पिचानोत जी ठिकाना कैरवाड़ा और उनके बाद उनके बेटे ठाकुर साहब राज सिंह पिचानोत संवत १६९० से ठिकाना कैरवाड़ा में स्थाई रूप से निवास करने लगे। ठाकुर साहब राज सिंह पिचानोत के पाँच बेटे उनमे से बेटे ठाकुर साहब जोरावर सिंह पिचानोत, ठाकुर साहब गुमान सिंह पिचानोत, ठाकुर साहब धन सिंह पिचानोत, ठाकुर साहब सायब सिंह पिचानोत, ठाकुर साहब संग्राम सिंह पिचानोत। ठाकुर साहब सायब सिंह पिचानोत शांत स्वभाव के थे। ठाकुर साहब सायब सिंह पिचानोत के घर में दो बेटे ठाकुर साहब धीरज सिंह पिचानोत, ठाकुर साहब मोहन सिंह पिचानोत ने जन्म लिए, एक दिन ठाकुर साहब सायब सिंह पिचानोत ने अपने दोनों बेटो को पास बुलाया और उनसे कहा की मेरी एक अंतिम इच्छा हैं कि मेरे मरने के बाद मेरे शरीर को अग्नि मत देना मुझे साधु, महात्माओ की तरह मिट्टी दे देना। और कुछ दिनों बाद फिर से युद्ध शुरु हो गया और ठाकुर साहब सायब सिह पिचानोत आमेर (जयपुर) की और से युद्ध भूमि में युद्ध करने गये ठाकुर साहब सायब सिंह पिचानोत इस बार के युद्ध में बहुत साहस से लड़े थे। लेकिन उनको युद्ध में तलवार लग गयी। और इस प्रकार से ठाकुर साहब सायब सिंह पिचानोत युद्ध लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हो गए। और युद्ध में पराक्रम दिखाते हुए ठाकुर साहब सायब सिंह पिचानोत हुए भोमिया ठाकुर हुए। ठाकुर साहब सायब सिंह पिचानोत का दाह संस्कार। हिन्दू सनातन धर्म में पार्थिव शरीर को दाह संस्कार करने का नियम है। सनातन धर्म में साधु को समाधि और सामान्यजनों का दाह संस्कार किया जाता है। इसके पीछे कई कारण हैं। साधु को समाधि इसलिए दी जाती है। क्योंकि ध्यान और साधना से उसका शरीर एक विशेष उर्जा लिए हुए होता है। इसलिए उसकी शारीरिक ऊर्जा को प्राकृतिक रूप से विसरित होने दिया जाता है। और परिवार और समाज के लोगों ने ठाकुर साहब सायब सिंह पिचानोत जी की अंतिम इच्छा को एक सिरे से खारिज कर दिया, और कहते हैं ना विधि के विधान को कोई नहीं बदल सकता है। और हिन्दू धर्म के अनुसार ठाकुर साहब सायब सिंह पिचानोत जी की अर्थी तैयार की गयी ठाकुर साहब सायब सिंह पिचानोत जी की अर्थी को अग्नि देने के लिए शमसान में ले आये और ठाकुर साहब सायब सिंह पिचानोत जी को अग्नि देने के लिए लकडिया लगा दी गयी और पुरे विधि विधान के साथ अग्नि उनके बड़े बेटे धीरज सिंह पिचानोत जी पास में आ गये तभी एक आकाशवाणी हुई आसमान से आवाज आने लगी फूलो की बारिश होने लगी और तब तक आसमान से बहुत तेज आवाज के साथ एक सिला (बहुत बड़ा पत्थर) आकर पड़ा ठाकुर साहब सायब सिंह पिचानोत जी का शव जमीन में अन्दर चला गया, इस प्रकार से ठाकुर साहब सायब सिंह पिचानोत जी का शव समस्त लकड़ियों के साथ धरती में समा गया और केवल ऊपर सिला नजर आने लगी। सिला 24 श्री श्री १००८ श्री भोमियाजी महाराज का चमत्कार हाथरस (उत्तर प्रदेश) के पास कोई सेठ रहता था। उसके कोई संतान नहीं थी। तो श्री श्री १००८ श्री भोमिया जी (ठाकुर साहब सायब सिंह पिचानोत जी) ने उनको एक सपना दिया की कैरवाड़ा में जाकर वहा राजपूतो का एक शमसान घाट हैं। वहा पर जाकर मेरा मन्दिर बन जायेगा तो आपके संतान हो जाएगी। सेठ कैरवाड़ा में पहुंच गया। और अपना सपना गाव के लोगों को बताने लगा और वहा सेठ ने भोमियाजी का मंदिर तैयार करा दिया। और उस सेठ को संतान हो गयी। उसी सेठ ने श्री श्री १००८ श्री भोमिया जी (ठाकुर साहब सायब सिंह पिचानोत जी) का दूसरा मंदिर हाथरस में जाकर बनवाया जो कि घंटा घर के पास हाथरस में ठाकुर साहब सायब सिंह पिचानोत जी (भोमिया जी) के नाम से जाना जाता हैं।

Related Images-

ठिकाने के प्रसिद्ध व्यक्तित्व

शीशराम सिंह पिचानोत

बारह कोटडी में शामिल, कैरवाड़ा जागीर 12घोड़े में स्थापना और अन्य जातियों को जमीन दान में देकर उने पनाह दी

साहब सिंह पिचानोत

ये भौमिया जी बने, आमेर जयपुर की तरफ से युद्ध में वीरगति मिली, इनका मंदिर है हर साल मेला भरता है।

भवर सिंह पिचानोत

इन्होंने भौमिया जी के मंदिर में जमीन दान, नर सिंह जी मंदिर दान, योगी समाज को शिवालय दान में, अन्य जातियों को जमीन दान में दी

Details Of Thikana Uploader

Dr Purendra Singh Pichanot

9610578959

Thikana Location

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